60 फ़ीसदी स्कूलों का संचालन  बिना लैब असिस्टेंट के
शिक्षा विभाग को चाहिए परिणाम : बेहतर व्यवस्था देने में है फिसड्डी

 

 

 क्रशर 

पिछले 5 सालों के दौरान उन्नयित हुई स्कूलों में प्रयोगशालाओ  का टोटा 

चलित प्रयोगशाला साबित होगी कितनी कारगर 

अरसे से नहीं हुई स्कूलों में प्रयोगशाला सहायकों की भर्ती

एक बार फिर आने वाले 2 महीने बाद स्कूलों में बोर्ड एग्जाम होंगे। शिक्षा विभाग लगातार मॉनिटरिंग करने का दावा कर रहा है लेकिन स्कूलों की हालत यह है कि जब स्कूलों में प्रयोगशाला सामग्री ही नहीं रहेगी तो छात्र प्रयोग क्या करेंगे और उनकी प्रायोगिक परीक्षा कैसे होगी ? क्योंकि जिले की 60 फ़ीसदी स्कूलों में प्रयोगशाला ही स्थापित नहीं है।  अगर है भी तो वह प्रयोगशाला संचालित करने वाला व्यक्ति नहीं है।  इन स्थितियों में शिक्षा विभाग के अधिकारी अगर यह दावा कर रहे हैं कि परिणाम बेहतर आएंगे तो यह केवल कोरी कल्पना होगी।

यहां यह उल्लेखनीय है कि रीवा जिले के अंदर लगभग 200 से ज्यादा हायर सेकेंडरी स्कूलों का संचालन हो रहा है । इसी प्रकार हाई स्कूले भी संचालित हो रही है।  इन सभी स्कूलों में प्रयोगशालाओं की अलग व्यवस्था होनी चाहिए । लेकिन सच्चाई यह है कि जो स्कूले बहुत पुरानी है उनमें प्रयोगशाला कक्ष है और प्रायोगिक उपकरण भी पर्याप्त हैं लेकिन पिछले 10 सालों के दौरान जो स्कूल है हाई स्कूल से हायर सेकेंडरी में तब्दील हुई हैं उन स्कूलों में न तो प्रायोगिक कक्ष ही बन पाए हैं और न ही प्रयोगशाला सहायक की तैनाती हो पाई है । इन स्थितियों में प्रयोगशाला का संचालन कैसे हो रहा हो रहा होगा यह अपने आप में सोचनीय है।  उधर पुराने विद्यालयों में भी प्रयोगशाला कक्षों की हालत दयनीय है , उपकरण पुराने हो चुके हैं , जो किसी काम के नहीं है और उनमें प्रायोगिक कार्य भी नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में अगर यह कहा जाए कि रीवा जिले में हाई सेकेंडरी स्कूल में अध्ययनरत छात्र प्रायोगिक क्रियाओं के बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञ से रह जाएंगे तो गलत नहीं होगा ?

मॉनिटरिंग यानी विजिट

शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालयों में उत्कृष्ट गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए लगातार सहायक संचालकों के नेतृत्व में दलों का गठन किया गया है। लेकिन यह दल मॉनिटरिंग करने की वजह केवल विजिट करता है।  इस अवस्था में वह स्कूलों की समस्या , छात्रों की समस्या पर जरा भी ध्यान नहीं देता । अगर यही हालात रहे तो इस मॉनिटरिंग का मतलब क्या है?

 

50 फ़ीसदी भी नहीं आ रहा परिणाम

काबिलेगौर तथ्य यह है कि रीवा जिले के सरकारी हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों  का परीक्षा परिणाम 50 फ़ीसदी भी नहीं आ रहा। रोते-धोते किसी प्रकार 50 फ़ीसदी को टच कर रहे हैं। जबकि वास्तविक परिणाम  32 से 37% के आसपास ही रहता है।  बाद में पूरक परीक्षा के माध्यम से पास होने वाले छात्रों की वजह से यह परिणाम 50 के आसपास पहुंच जाता है । परिणाम आने के बाद समीक्षा बैठकों में प्राचार्यो को नोटिस देने का सिलसिला शुरू होता है और फिर जवाब तलब में सब कुछ खत्म हो जाता है।

 

पिछले 20 साल से लैब असिस्टेंट की भर्ती नहीं

सबसे अहम तथ्य यह है कि मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले 20 साल से लैब असिस्टेंट की भर्ती ही नहीं की है । जबकि हायर सेकेंडरी स्कूलों में कम से कम तीन लैब असिस्टेंट और हाई स्कूल में एक लैब असिस्टेंट होना अनिवार्य है।  अब जब लैब असिस्टेंट ही नहीं है तो छात्रों को प्रायोगिक क्रियाएं कराने के लिए कौन जिम्मेदार होगा । इसी प्रकार विषय गत व्याख्याता भी स्कूलों में पूरी तरह से तैनात नहीं है ऐसे में 100 फ़ीसदी परिणाम आने की कल्पना करना ही व्यर्थ है।

 

चलित प्रयोगशाला होगी कितनी कारगर

तीन दिवस पूर्व रीवा जिले के स्कूली छात्रों को प्रायोगिक क्रियाओं में सक्रिय करने के लिए चलित प्रयोगशाला को जिला प्रशासन ने हरी झंडी दिखाई है।  अब इस चलित प्रयोगशाला से छात्र कितनी जानकारियां इकट्ठी कर पाएंगे , यह चलित प्रयोगशाला एक स्कूल को कितने घंटे देगी , प्रयोगशाला में तैनात कर्मचारी क्या-क्या जानकारी दे पाएंगे , यह अपने आप में सवालिया निशान हैं । फिर भी प्रशासन ने कम से कम  सोचा,   यह अच्छी बात है । लेकिन इन स्थितियों में न तो शिक्षा की गुणवत्ता  बढ़ पाएगी और न ही परिणामों का प्रतिशत और बेहतर हो पाएगा।