जिला अध्यक्षी सौपने में परहेज क्यों?

महिलाओं ने भाजपा के साथ क्या किया है कसूर
सुनील अग्रिहोत्री,रीवा
भाजपा में जब भोपाल से थोपा हुआ जिला अध्यक्ष होना है, तो उन भाजपा नेत्रियों का क्या कसूर है, जो पार्टी के लिए दिन रात एक कर रहीं है। अक्सर देखने में आता है कि पार्टी संगठन के प्रमुख पदों व १५ साल भाजपा की सत्ता में रीवा जिले की महिला नेत्रियों को कोई खास ओहदा नहीं सौंपा गया। ऐसा भी नहीं है कि यहां भाजपा महिला नेत्रियां पढ़ी लिखी नहीं है और राजनैतिक सूझ-बूझ की उनमें कमी है। इसके बावजूद जिले की भाजपा महिला नेत्रियों को शीर्ष अस्तर का नेतृत्व खास अवसरों पर तबज्जों नहीं दिया करता। लोकतांत्रिक तरीके की बात करने वाली भाजपा में महिला नेत्रियों की हो रही अनदेखी कई सवाल खड़ा कर रही है। 
बीते १५ साल तक सत्ता के दौरान काफी संख्या में महिलाएं भाजपा से जुडऩे के साथ-साथ संगठन व पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़-चढक़र अपनी भागीदारी सुनिश्चत करती रहीं। इनता नहीं आम चुनावों में भी पार्टी प्रत्याशीयों के पक्ष में भाजपा की महिला नेत्रियां अपनी सक्रियता में कहीं भी पीछे नहीं रही। जनमानस के बीच पार्टी की रीति-नीति का प्रचार-प्रसार करने में भी महिला नेत्रियों ने कोई संकोच नहीं किया। साथ ही विरोधी पार्टियों के आक्रामक आरोपों का उसी लहजे में प्रतिकार करने में भी भाजपा से जुड़ी महिला नेत्रियों अपना तेवर कभी कमजोर नहीं की। इसके बावजूद संगठन के प्रमुख ओहदे भाजपा द्वारा उन्हें न सौंपा जाना कहीं न कहीं कई सवाल खड़ा कर रहा है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मंचों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में तो महिलाओं को लेकर समानता की बात करता है लेकिन जब कोई बागडोर सौपने का वक्त आता है तो महिलाएं भुला दी जाती हंै। 


कांग्रेसी सत्ता में भी भाजपा का दामन नहीं छोड़ा
जिले में कई ऐसी महिला नेत्रियां है जो १५ वर्ष पूर्व कांग्रेस के १० वर्ष के शासन काल में भी भाजपा का साथ नहीं छोड़े। भाजपा की महिला नेत्रियों ने पद व सत्ता की लालच में अपने सिद्धांतो से समझौता नहीं किया। उस वक्त भाजपा में महिला वर्ग का जुड़ाव न के बराबर रहा, लेकिन जो महिला नेत्रियां पार्टी से जुड़ी रहीं वे भाजपा संगठन व सत्ता विरोधी कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता निभाने में आगे रहती रहीं। इतना ही नहीं कांग्रेस सत्ता के उन १० वर्षांे में विरोध प्रदर्शन करने में भी भाजपा की महिला नेत्रियां कभी पीछे नहीं रहीं। इसके बावजूद भाजपा के १५ वर्ष के शासन काल में जिले की महिला नेत्रियों को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उदारता के साथ कोई खास ओहदा नहीं सौंपा।
भाजपा नेत्रियों में योग्यता की कोई कमी नहीं
जिले की कई ऐसी भाजपा नेत्रियां हैं जिनमे योग्यता की कोई कमी नहीं है। शीर्ष नेतृत्व की सोच शायद यही है कि संगठन का नेतृत्व सम्भालने में महिला नेत्रियां सक्षम नहीं है। सवाल इस बात का उठता है कि जो महिला नेत्रियां पार्टी के लिए रात-दिन एक कर सकती हैं क्या उनमें संगठन चलाने की क्षमता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नहीं दिख रहा। वर्तमान कांग्रेस सरकार के दौरान भी भाजपा की महिला नेत्रियां पार्टी द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन कार्यक्रमों में अपनी सक्रिय सहभागिता निभा रही हैं। यही नहीं पार्टी संगठन के कार्यक्रमों व बैठकों में भी महिलाओं की संख्या कम नहीं रहती। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व द्वारा संगठन में उन्हें मात्र लालीपॉप दिया जा रहा है। 


थोपना ही है तो महिलाओं की अनदेखी क्यों?
संगठन के चुनाव में भाजपा पूर्व से लोकतांत्रिक तरीके दुहाई देती चली आ रही है लेकिन जब संगठन में चुनाव की बारी आती है तो आपसी सहमत की बात करके पद पर मनचाहे चेहरों को थोप देती है। बीते दिनों सम्पन्न हुये मण्डल अध्यक्षों का चुनाव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जिला अध्यक्षी की जब बारी आई तब भी भाजपा का लोकतांत्रिक तरीका धरा का धरा रह गया। जिला अध्यक्षी में भी दिखावे की रायशुमारी व आपसी सहमत ही सामने आई। नतीजा यह रहा कि जब मनचाहे चेहरों पर सहमत नहीं बनी तो मामला शीर्ष नेतृत्व को सौंप दिया गया। जिला अध्यक्षी चुनाव का परिणाम यह होगा कि शीर्ष नेतृत्व अपना मनचाहा चेहरा रीवा जिले में थोप देगा। अब सवाल इस बात का उठता है जब शीर्ष नेतृत्व को ही जिला अध्यक्षी में चेहरा थोपना है तो लोकतांत्रिक तरीके की कहां रह गई। फिर यदि थोपना ही है तो महिला नेत्रियों की अनदेखी क्यो हो रही है। महिलाओं ने क्या कशूर किया है जोकि उन्हें जिला अध्यक्षी पद पर नहीं बैठाया जा रहा है। 
आम चुनावों में भी ज्यादा रही महिलाओं की भागीदारी
वर्ष २०१८ में सम्पन्न हुये विधानसभा चुनाव एवं २०१९ में हुये लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को जो मद प्राप्त हुआ उसमें महिलाओं का प्रतिशत ५० से ऊपर रहा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहां की महिला नेत्रियों ने महिला मतदाताओं का भाजपा की तरफ झुकाव करने में अथक प्रयास किया है। जो मत प्रतिशत भाजपा के पक्ष में महिलाओं का रहा है उससे भी महिला नेत्रियों का हक भाजपा जिला अध्यक्षी के लिए बनता है। आखिर इस बिन्दु पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व गंभीरता से क्यों विचार नहीं कर रहा है।